मुजफ्फरनगर। चर्चित रामपुर तिराहा कांड में सामूहिक दुष्कर्म, लूट, छेड़छाड़ और साजिश रचने के मामले में पीएसी के दो सिपाहियों पर तीन दशक बाद दोष सिद्ध हुआ। अपर जिला एवं सत्र न्यायालय संख्या-7 के पीठासीन अधिकारी शक्ति सिंह ने सुनवाई की। सजा के प्रश्न पर सुनवाई के लिए 18 मार्च नियत की गई। दोनों दोषी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
शासकीय अधिवक्ता फौजदारी राजीव शर्मा, सहायक शासकीय अधिवक्ता फौजदारी परवेंद्र सिंह, सीबीआई के विशेष लोक अभियोजक धारा सिंह मीणा, महेश यादव और उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया कि सीबीआई बनाम मिलाप सिंह की पत्रावली में अदालत ने सुनवाई की। वारदात के वक्त पीएसी में रहे आरोपी मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप सिंह अदालत में हाजिर हुए। सीबीआई की ओर से कुल 15 गवाह पेश किए गए। अदालत ने दोनों आरोपियों पर दोष सिद्ध करते हुए सजा के प्रश्न पर सुनवाई के लिए 18 मार्च की तिथि नियत कर दी है। दोनों दोषियों को कड़ी सुरक्षा के बीच जिला कारागार भेज दिया गया।
यह था मामला
एक अक्तूबर 1994 की रात अलग राज्य की मांग के लिए देहरादून से बसों में सवार होकर आंदोलनकारी दिल्ली के लिए निकले थे। इनमें महिला आंदोलनकारी भी शामिल थीं। रात करीब एक बजे रामपुर तिराहा पर बस रुकवा ली। दोनों दोषियों ने बस में चढ़कर महिला आंदोलनकारी के साथ छेड़खानी और दुष्कर्म किया। पीड़िता से सोने की चेन और एक हजार रुपये भी लूट लिए थे। आंदोलनकारियों पर मुकदमे दर्ज किए गए। उत्तराखंड संघर्ष समिति ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसके बाद 25 जनवरी 1995 को सीबीआई ने पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे।
यहां के रहने वाले हैं दोनों दोषी
पीएसी गाजियाबाद में सिपाही मिलाप सिंह मूल रूप एटा के निधौली कलां थाना क्षेत्र के होरची गांव का रहने वाला है। दूसरा आरोपी सिपाही वीरेंद्र प्रताप मूल रूप सिद्धार्थनगर के थाना पथरा बाजार के गांव गौरी का रहने वाला है। दोनों अभियुक्तों पर धारा 376जी, 323, 354, 392, 509 व 120 बी में दोष सिद्ध हुआ।