उत्तराखंड

खाई में गिरने से गई रिटायर्ड क्लर्क की जान

mountain pain
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पहाड़ में सड़क न होना मतलब जिंदगी पहाड़ से भी मुश्किल हो जाना। यह दिक्कत तब और नासूर बन जाती है जब मरीज की जान पर बन आती है। ऐसा ही वाक्या कपकोट के घायल बुजुर्ग के साथ हुआ, जब सड़क नहीं होने का खामियाजा उन्हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा।

हल्द्वानी पहुंचने में देरी पर डॉक्टरों का कहना था कि अगर समय पर अस्पताल पहुंच जाते तो शायद उनकी जान बच जाती। बागेश्वर जिले के ग्राम खाईधार, तहसील कपकोट निवासी हीरा सिंह (65) पुत्र स्व. गोविंद सिंह शिक्षा विभाग में क्लर्क पद से सेवानिवृत्त हैं। भाई मेहमान सिंह ने बताया कि उनके गांव में प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य चल रहा है। भाई हीरा सिंह इस कार्य की देखरेख कर रहे थे।

14 मार्च को घर के पीछे पैर फिसलने से हीरा सिंह 20 फीट नीचे खाई में गिर गए। बमुश्किल उन्हें खाई से बाहर निकाला। मगर सड़क तक पहुंचाने के लिए कोई व्यक्ति नहीं मिला। दूसरे गांव से लोगों को बुलाना पड़ा। चार लोगों की मदद से रात को मशाल जलाकर उन्हें कुर्सी पर बैठाकर सड़क पर लाया गया। इसके बाद प्राइवेट कार से बागेश्वर जिला अस्पताल पहुंचाया गया। हालत गंभीर होने पर डॉक्टरों ने उन्हें हल्द्वानी रेफर कर दिया था। मेहमान सिंह के अनुसार भाई को घटनास्थल से हल्द्वानी लाने में 14 घंटे लग गए। 15 मार्च को उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया।

बुधवार को इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। उनका कहना है कि गांव में बिजली है, मगर छोटे-मोट फॉल्ट से सप्ताहभर तक गुल रहती है। घटना वाले दिन भी बिजली नहीं थी। उनके गांव में आज तक सड़क नहीं पहुंची। तीन किलोमीटर खड़ी चढ़ाई में मरीज को लेकर चढ़ना किसी चुनौती से कम नहीं है।

108 के चालक ने नहीं किया इंतजार

मेहमान सिंह का कहना है कि गांव से सड़क तक आने में उन्हें तीन घंटे लग गए थे। उन्होंने 108 एंबुलेंस को बुलाया। चालक ने दो घंटे इंतजार किया। बाद में देर होने का हवाला देकर चला गया। प्राइवेट वाहन ढूंढने में वक्त लग गया। हल्द्वानी में डॉक्टर ने बताया कि तीन घंटे पहले इलाज शुरू हो जाता तो मरीज की जान बच सकती थी।

 

 

 

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