अपने आप में इतिहास समेटे हुए है सहसवान, जंग-ए-आजादी में भी रहा है योगदान
- रिपोर्टः आसिम अली, बदायूं
बदायूँ ज़िले का नगर सहसवान का इतिहास गौरबमयी रहा है. यहाँ के 4 हिन्दू राजाओं की राजधानी रही है और मुगल शासकों ने इसे लूटा. राजाओं ने अपना वजूद कायम करने को कई किले बनवाये. जिसके अवशेष आज भी मौजूद है. कई युगों का इतिहास समेटे नगर ज़िला मुख्यालय भी रहा है. यहां खूनी इमली के नाम से आज भी एक वृक्ष मौजूद है. जिस पर लटकाकर अंग्रेज़ो ने 19 क्रांतिकारियों को गोली मारकर शहीद कर दिया था.
हिन्दू राजाओं की राजधानी रहे इस नगर के महत्व आज दो किलो के अवशेष के रूप में टीले मौजूद है, जो कोर्ट के नाम से जाना जाता है. इन टीलों के नीचे से आज भी एक मीटर 2 गज़ की चौड़ी ईट निकलती है. इन टीले के नीचे से एक झील बहती है, जिसे ढंढ कहते है.
ईसा से 500 वर्ष पूर्व यह एक बड़ा नगर था और सूरजवंशी राजा समुद्र पाल उर्फ सालवान की राजधानी रहा. नगर के नामकरण के बारे में लोगों के अलग-अलग विचार है कि यहाँ सहस्रबाहु नाम के राजा थे, जिन्होंने इसे बसाया जो बाद में सहसवान हो गया.
जबकि कुछ का विचार है कि इसका नाम शिव स्थान था. शिव और स्थान को मिलाकर सहसवान पड़ा था. कुछ लोग कहते है कि यह नगर तीन भागों में विभक्त है. भगत नगला कस्वा चमनपुरा व कस्बा पट्टी यकीन मोहम्मद. इस प्रकार यह नगर तीन हिस्सों से होने के कारण इसका नाम सहसवान पड़ा.
नगर से एक मील दूर उत्तर पूर्व में पानी का एक स्त्रोत है, जिसे सूरज कुंड कहा जाता है. अब वह सरसौता के नाम से प्रसिद्ध है। प्राचीन सहसवान के इतिहास की अभी तक विस्तृत जानकारी नहीं है. ऐतिहासिक ग्रामों से कुछ जानकारी हासिल होती है. मिसाल के तौर पर मोहम्मद शाह बादशाह का यहां आना इतिहास की किताबों से सिद्ध होता है. लेकिन आने का कारण अज्ञात है.
इस प्रकार अलाउदीन खिलजी का यहां आकर किला बनवाना उस शिलापट से ज्ञात होता है, जो यहां खुदाई के दौरान मिला. बताया जाता है कि सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 695 हिजरी में राजा का सिंहासन संभाला था और तभी बदायूं पर आक्रमण किया. साथ ही सहसवान की सुंदरता देखकर एक भव्य किले का निर्माण कराया. जिसमें एक शाही मस्जिद भी थी. किलो के धराशायी होने पर शाही मस्जिद की बुनियादों पर 1303 हिजरी को जामा मस्जिद का निर्माण कराया था. सन 1802 में सहसवान ज़िला घोषित किया गया. 1836 तक ज़िला बनाया गया. अब सहसवान उपनगर है, जिसे आज तहसील का दर्जा प्राप्त है.
कला एवं साहित्य का भी नगर है सहसवान
पदम भूषण पुरुस्कार प्राप्त मुश्ताक हुसैन नवाव रामपुर के दरबार में मुख्य गायक थे. वह यहां के मूल निवासी थे. उस्ताद निसार अहमद खां, जो बड़ोदा राज दरबार में गायक थे, वह भी सहसवान संगीत घराने से थे. मिर्ज़ा ग़ालिब के शिष्य बफा भी यहीं के थे.
नगर इत्र के लिए मशहूर था. यहां 1889 में हाजी सैयद अब्दुल हमीद ने कारखाना मुश्कबार स्थपित किया था. जिसका इत्र ब्रिटेन, मालमा, ईरान, इंग्लैंड व अमेरिका तक जाता था. यहां केबड़े के अलावा गुलाब, चमेली, मोलक, ज़ाफ़रान, सुरंगी, मजमूद आदि फूलों का इत्र व इंसेंस बनता था. अब यह कारखाना समाप्त हो गया. जिस कारण उच्चतम क़्वालिटी के इत्र के लिए तरस रहे है.
नगर की जनता के लिए रेलमार्ग के लिए जनता द्वारा समय-समय पर मांग उठाई जाती है. प्रतिनिधियों को विकास लिए ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है. जिससे नगर सहसवान की पुनरू अलग पहचान हो सके।