■ पुश्तैनी परंपराओं को आगे बढ़ा रहा कटारिया परिवार, एक चूल्हे पर पक रहा संयुक्त परिवार का खाना
■ मुखिया ने बनवाया 3.50 लाख की लागत से ‘लखटकिया खाट’
✍️रिपोर्ट: महेंद्र भारती, रेवाड़ी, हरियाणा
रेवाड़ी। आज के इस युग में जहां एकल परिवारों का बोलबाला है। भाई भाई के बीच दूरियां बनी हुई हैं, वहीं बावल का कटारिया परिवार आज भी पुरानी परंपराओं को आगे बढ़ाने की मिसाल कायम कर रहा हैं। परिवार का खाना आज भी एक ही चूल्हे पर पकता है। शौक पूरा करने के लिए परिवार के मुखिया ने पुराने जमाने में बनने वाले पलंगों की तर्ज पर करीब 3.50 किलो वजन की एक अनोखी खाट बनाई हैं जो क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ हैं। — राजेंद्र कटारिया ने बताया कि वह ऐसा पलंग बनवाने के लिए काफी दिनों से बेताब थे, जिस पर परिवार के कई सदस्य एक साथ आराम फरमा सकें।
बाहर से आने वाले कई लोग पलंग पर बैठ सकें। इसके लिए उन्होंने राजस्थान के खैरथल से शीशम 4 इंच मोटे पाए खासतौर पर तैयार कराए। शाल की लकड़ी से 8 फुट लंबा और 6 फुट चौड़ा पलंग तैयार कराया। इसे तैयार कराने में 145 किलोग्राम रेशम की रस्सी का उपयोग किया गया। कारीगर ने 5400 रुपये में रस्सी से पलंग तैयार किया। 29 सदस्यों वाले इस परिवार ने लाखों की लागत से भारी भरकम पलंग बनवाया है, जो आसपास के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
इस पलंग में चांदी व पीतल की जड़ाई कराई गई है। दयाल कटारिया के बेटे राजेंद्र कटारिया खुद मिठाई की फैक्ट्री चलाते हैं। उनके चार बेटों में से दो पेशे से वकील हैं। कटारिया ने बताया कि पलंग को खास बनाने के लिए इस पर चांदी के 164 सिक्के जड़वाए गए हैं। 17 किलोग्राम पीतल से मुरादाबादी शेर व गायत्री मंत्र जड़वाकर कई अन्य कलाकृत्रियां तैयार कराई गई हैं।
पलंग तैयार कराने पर 3.50 लाख रुपये का खर्च आया है। इस पलंग को राजेंद्र ने अपनी बैठक में रखा हुआ है, ताकि बाहर से आने वाले लोग इस पर आराम फरमा सके। पलंग पर कई लोग बैठकर आराम कर सकते हैं। यह पलंग अब आसपास के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र साबित हो रहा है। सभी सदस्यों का भोजन सारी बहुएं मिलकर एक ही चूल्हे पर तैयार करती हैं। इसके बाद पूरा परिवार एक साथ बैठकर भोजन ग्रहण करता है।
राजेंद्र कटारिया का कहना है कि उनके परिवार में एक मिठाई की दुकान चलाता है। चारों बेटों का भरा पूरा परिवार है, जिसमें बहुओं सहित कुल 29 सदस्य हैं। पुरखों से लेकर अब तक परिवार के सदस्यों में कभी अलग-अलग रहने की सोच ही पैदा नहीं हुई। वर्तमान पीढ़ी इसका खुलकर अनुशरण कर रही है। घर में हमेशा सात-आठ गाएं रहती हैं, जिनकी देखभाल बहुएं करती हैं। इससे एक ओर जहां गोसेवा की भावना को बल मिलता है, तो दूसरी ओर परिवार को दूध-घी का खर्च और आमदनी गायों के पालन से होती है। परिवार के सदस्यों में कभी भी किसी बात को लेकर कोई विवाद नहीं होता, जिस कारण पूरा एकसूत्र में बंधा हुआ है। बच्चे भी इसी परिपाटी की पालना करते हुए मिल-जुलकर रहते हैं।