जापान के टोयोआके शहर ने स्क्रीन टाइम दो घंटे सीमित किया, क्योंकि अध्ययन चेतावनी दे रहे हैं कि 2050 तक 740 मिलियन बच्चे मायोपिया के शिकार होंगे और इसका सबसे बड़ा कारण है डिजिटल स्क्रीन की लत।
नई दिल्ली। डिजिटल युग में बच्चों की आंखें खतरे में हैं। ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी की 2024 की एक रिपोर्ट ने चौंकाने वाला खुलासा किया कि 1990 में 24% बच्चों को मायोपिया (नजदीकी दृष्टिदोष) था, जो 2023 में बढ़कर 36% हो गया।
2050 तक यह आंकड़ा 40% तक पहुंच सकता है, यानी करीब 74 करोड़ बच्चे और किशोर चश्मे के मोहताज होंगे। 50 देशों के 50 लाख बच्चों पर आधारित 276 अध्ययनों से पता चला कि 20 लाख से ज्यादा बच्चे पहले ही मायोपिया से जूझ रहे हैं।
जापान के आइची प्रांत के टोयोआके शहर ने इस खतरे को भांपते हुए 30 सितंबर 2025 को एक अध्यादेश पारित किया, जिसके तहत पढ़ाई या काम के अलावा स्क्रीन टाइम को रोजाना दो घंटे तक सीमित कर दिया गया।
यह कदम बच्चों की आंखों को बचाने की दिशा में एक मिसाल है।
जापान में मायोपिया का संकट, 95% किशोर प्रभावित
जापान में हालात और चिंताजनक हैं। जुलाई-अगस्त 2025 में अमेरिकन एकेडमी ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित एक स्टडी के मुताबिक, 6-11 साल के 77% और 12-14 साल के 95% बच्चे मायोपिया से पीड़ित हैं।
इसका मुख्य कारण है आउटडोर गतिविधियों में कमी और स्मार्टफोन, टैबलेट व कंप्यूटर पर बढ़ता समय। एक घंटे का अतिरिक्त स्क्रीन टाइम मायोपिया का जोखिम 21% बढ़ा देता है।
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जापानी विशेषज्ञों ने जेनेटिक्स के साथ-साथ कम आउटडोर समय और स्क्रीन की लत को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया। स्क्रीन टाइम से नींद की कमी, मानसिक थकान और शारीरिक निष्क्रियता जैसी समस्याएं भी बढ़ रही हैं, जो आंखों की सेहत को और नुकसान पहुंचाती हैं।
भारत में भी 2024 की एक स्टडी ने पाया कि 10-15 साल के 30% से ज्यादा शहरी बच्चे मायोपिया से प्रभावित हैं।
अभिभावकों के लिए चेतावनी, ‘स्क्रीन से दूरी जरूरी’
जापान का टोयोआके शहर दुनिया के लिए एक सबक है। अध्ययनों ने सुझाव दिया कि बच्चों को रोज कम से कम दो घंटे आउटडोर गतिविधियों में बिताने चाहिए, क्योंकि प्राकृतिक रोशनी आंखों के लिए फायदेमंद है।
अभिभावकों को बच्चों को मोबाइल या टैबलेट देने से पहले दो बार सोचना होगा। जापानी मॉडल की तरह स्क्रीन टाइम को सीमित करना, नियमित आंखों का चेकअप कराना और बच्चों को आंखों की अहमियत समझाना जरूरी है।
विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि 20-20-20 नियम (हर 20 मिनट में 20 सेकंड के लिए 20 फीट दूर देखें) अपनाएं और बच्चों को खेल के मैदान की ओर ले जाएं। यह न केवल मायोपिया से बचाएगा, बल्कि उनकी मानसिक और शारीरिक सेहत को भी बढ़ावा देगा।
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भारत के लिए सबक, समय रहते जागें
भारत में स्मार्टफोन और इंटरनेट की बढ़ती पहुंच के साथ मायोपिया का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। 2023 में 45% से ज्यादा शहरी बच्चे रोजाना चार घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम बिता रहे थे।
टोयोआके जैसे कदम भारत में भी जरूरी हैं, खासकर जब 2050 तक 40% बच्चों के चश्मा लगने की आशंका है।
स्कूलों को आउटडोर गतिविधियों को बढ़ावा देना चाहिए, और सरकार को जागरूकता अभियान चलाने चाहिए। बच्चों की आंखों का भविष्य बचाने के लिए आज से कदम उठाना होगा, वरना डिजिटल क्रांति का यह दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ियों को भारी पड़ सकता है।