नई दिल्ली. बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की भारी जीत के पीछे नीतीश कुमार का विकास-केंद्रित एजेंडा और पीएम नरेंद्र मोदी का केंद्र से सहयोग का वादा ने जनता का दिल जीत लिया। लगभग दो दशकों के शासन के बावजूद नीतीश पर जनता का अटूट विश्वास एनडीए को प्रचंड बहुमत दिलाने में बड़ा कारक साबित हुआ, जिसकी कल्पना विपक्ष ने भी नहीं की थी।
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महागठबंधन को लग रहा था कि ताबड़तोड़ मतदान सरकार उखाड़ फेंकने का संकेत है, लेकिन ईवीएम से आ रहे नतीजों ने विपक्ष को स्तब्ध कर दिया। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कम वोटिंग सत्ता पक्ष के हक में होती है, लेकिन 10 प्रतिशत से ऊपर टर्नआउट बदलाव की आहट लाता है। शायद यही भ्रम महागठबंधन के नेताओं को था, लेकिन नतीजे बिहार की जनता के नीतीश-मोदी पर भरोसे को उजागर कर गए।
इस महाजय में नीतीश कुमार और चिराग पासवान प्रमुख विजेता हैं। चिराग की एलजेपी (आरवी) ने शानदार प्रदर्शन किया, जबकि नीतीश की जेडीयू को दोगुना लाभ मिला। सेहत और नेतृत्व पर विपक्ष के तंजों के बावजूद नीतीश जनता की पसंद बने रहे। 2000 में अटल बिहारी वाजपेयी के समर्थन से सीएम बने नीतीश ने गठबंधन बदले, लेकिन सत्ता का केंद्र बने रहे – नौ बार शपथ ले चुके हैं। यह जीत बताती है कि विपक्षी सवालों के बावजूद जनता नीतीश को प्रदेश की ‘सेहत’ का डॉक्टर मानती है।
एक बड़ा कारण महिलाओं का ऊंचा मतदान प्रतिशत रहा। 2010 से चार चुनावों में महिलाएं पुरुषों से ज्यादा वोट डाल रही हैं – पहले 50 फीसदी से बढ़कर अब 70 फीसदी से ऊपर। नीतीश सरकार की योजनाओं ने महिलाओं को सशक्त बनाया: छात्रवृत्ति, आरक्षण, साइकिल-पोशाक स्कीम, स्वयं सहायता समूहों से रोजगार, उद्योग सहायता और हालिया 10 हजार रुपये की सीधी सहायता। सरकारी नौकरियों में 33 फीसदी और पंचायती राज में 50 फीसदी आरक्षण ने महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया। इस बार उन्होंने स्वतंत्र फैसले से नीतीश के पक्ष में वोट दिया।
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एनडीए में नीतीश के नाम पर एकजुटता दिखी, जबकि महागठबंधन बिखरा रहा। नामांकन के आखिरी दिन तक सीट बंटवारा नहीं हुआ, कई जगह सहयोगी आमने-सामने पड़ गए। महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम और मुकेश सहनी को डिप्टी का चेहरा घोषित किया, लेकिन जनता ने मोदी-नीतीश की विकास छवि को तरजीह दी। एनडीए ने साबित किया कि डबल इंजन सरकार ही बिहार को गति दे सकती है। जनता जंगलराज नहीं, सुशासन चाहती है।
2020 में एनडीए को नुकसान पहुंचाने वाले चिराग पासवान का इस बार साथ ‘संजीवनी’ साबित हुआ। जेडीयू-बीजेपी दोनों को फायदा मिला। ग्रामीण-गरीबों के लिए जमीनी योजनाएं – नीतीश का सात निश्चय और केंद्र की स्कीम्स – ने ईबीसी-दलित वोटरों को जोड़ा। महिलाओं पर केंद्रित नीतियों ने एनडीए का आधार मजबूत किया।





