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मुजफ्फरनगर का ‘शिकायतबाज’ पदम सिंह: 32 साल और 7680 शिकायती-पत्र! एक आदमी की जिद ने हिलाया हुआ है पूरा सिस्टम!

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  • ‘द एक्स इंडिया’ के लिए प्रधान संपादक अमित सैनी की रिपोर्ट

कल्पना कीजिए एक ऐसे व्यक्ति की, जो 32 सालों से हर कार्यदिवस कलेक्ट्रेट की सीढ़ियां चढ़ता है, शिकायती पत्र थमाता है और लौट जाता है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर ज़िले की खतौली तहसील के गांव जावन से 30 किमी दूर आने वाला करीब 60-65 वर्षीय पदम सिंह यही करता है।

अधिकारियों के लिए वह एक सिरदर्द है, लेकिन पदम की जिद अटूट है। उसे ना आंधी रोक पाती और ना बरसात। हर दिवस, चाहे तहसील दिवस हो या समाधान दिवस, उसका प्रार्थना-पत्र तैयार रहता है। कलेक्ट्रेट में होमगार्ड से चपरासी तक उसे नाम से जानते हैं।

Meet Padam Singh from Muzaffarnagar

32 सालों में 7680 पत्रों की बाढ़!

महीने में औसतन 10 से 20 शिकायती-पत्र…, साल में 240… और 32 सालों में करीब 7680 शिकायतें… पदम सिंह का यह रिकॉर्ड प्रशासन को हैरान करता है। हर मुद्दा उसकी कलम की जद में होता है।

गांव की सड़क से लेकर अस्पताल की दवा तक। अधिकारी संज्ञान लेते हैं, जांच होती है, लेकिन पदम संतुष्ट नहीं होते।

 

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पदम सिंह कहते हैं, “न्याय मिले बिना चैन नहीं।”

पदम सिंह का यह सिलसिला कभी थमता नहीं, बल्कि हर जांच के बाद नई शिकायतों की बौछार लाता है।

 

Meet Padam Singh from Muzaffarnagar

‘कुर्ते में छिपा एक हाथ, दूसरे में शिकायती-पत्र’

कुर्ता-पायजामा में सजे पदम सिंह की पहचान उनका बायां हाथ है, जो हमेशा कुर्ते के अंदर छिपा रहता है। यह आदत बायां हाथ की दिक्कत से शुरू हुई। DM को शिकायत की, तो VIP इलाज हुआ।

जिला अस्पताल में भर्ती, दवाइयां दीं और कई दिनों के उपचार के बाद डॉक्टरों ने फिट घोषित किया। लेकिन पदम मानते नहीं।

 

वह कहते हैं, “डॉक्टर झूठ बोलते हैं, हाथ ठीक नहीं।”

 

DM उमेश मिश्रा कई बार अस्पताल भेज चुके, CMO तक विशेष आग्रह किए, लेकिन पदम का हाथ कुर्ते से बाहर नहीं निकलता।

 

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जड़ में बैनामा विवाद, 1995 से चलती लड़ाई

पदम सिंह की शिकायतों की जड़ 1995 का बैनामा है। खसरा नंबर 137 की 0.3415 हेक्टेयर जमीन का बैनामा पदम सिंह द्वारा अख्तरी के नाम किया था।  अख्तरी की मौत के बाद वारिसों ने गीता को बेचा, फिर मंजू को। पदम सभी बैनामे निरस्त चाहते हैं।

कई जांच हुईं, हर जांच पदम सिंह के खिलाफ ही गई। एसडीएम खतौली की मार्च 2025 रिपोर्ट में भी सब वैध पाया गया। कोर्ट जाने की सलाह दी गई, लेकिन पदम नहीं मानते।

वह कहते हैं, “धोखा हुआ, न्याय चाहिए।”

आपको जानकर हैरत होगी कि हर जांच रिपोर्ट के बाद वो जांच कमेटी के ही खिलाफ शिकायत लेकर कलेक्ट्रेट पहुंच जाते हैं। उस पर भी जांच होती है और कमेटी की रिपोर्ट सही पाई जाती है, लेकिन पदम सिंह नहीं मानते।

Meet Padam Singh from Muzaffarnagar

“संतुष्ट नहीं होते, बस शिकायतें करते हैं”

 

DM उमेश कुमार मिश्रा कहते हैं, “पदम सिंह के मामले में कई जांच कराई जा चुकी हैं। लेकिन वो संतुष्ट नहीं होते। अधिकांश हर कार्यदिवस में एक नया प्रार्थना-पत्र लेकर आते हैं।”

पदम को देखते ही अधिकारी हाथ जोड़ लेते, लेकिन वह कोसते हुए पत्र थमाते हैं। यह जिद प्रशासनिक संसाधनों का बोझ बढ़ाती है, लेकिन पदम का विश्वास अटल है।

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एक आम आदमी की लड़ाई, लोकतंत्र की ताकत

पदम सिंह की कहानी एक आम आदमी की अटूट जिद है, जो सिस्टम को चुनौती देती है। 7680 पत्रों में वह न्याय की आस रखते हैं। यह कथा मुजफ्फरनगर के लिए एक पहेली है कि क्या पदम की लड़ाई कभी थमेगी? या प्रशासन को हमेशा यह सिरदर्द झेलना पड़ेगा?

पदम कहते हैं, “मैं लड़ता रहूंगा, न्याय मिले बिना रुकूंगा नहीं।”

 

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