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सोना, चांदी या तांबा: जानें कौन-सा बर्तन बनाएगा आपको स्वस्थ और देगा लंबी उम्र!

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आयुर्वेद के अनुसार, रसोई के बर्तन सिर्फ खाना पकाने का साधन नहीं, बल्कि सेहत का खजाना हैं। सोने से लेकर मिट्टी तक, हर धातु का असर है आपकी इम्युनिटी और उम्र पर।


 

हमारी रसोई के बर्तन केवल खाना पकाने या परोसने तक सीमित नहीं हैं; ये हमारे स्वास्थ्य, पाचन और रोग प्रतिरोधक क्षमता पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

आयुर्वेद में हर धातु और सामग्री की अपनी खासियत बताई गई है, जो शरीर की ऊर्जा को संतुलित करती है और दीर्घायु को बढ़ावा देती है।

आइए, जानते हैं कि सोने से लेकर मिट्टी तक, कौन-सा बर्तन आपके लिए कितना फायदेमंद है और किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

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सोने और चांदी के बर्तन

सोने के बर्तन आयुर्वेद में सबसे श्रेष्ठ माने जाते हैं। ये शरीर में ऊर्जा का संचार करते हैं, रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं और मानसिक शांति प्रदान करते हैं।

सोने में परोसा भोजन पोषण को बढ़ाता है, लेकिन इसकी कीमत इसे रोजमर्रा के उपयोग से दूर रखती है। वहीं, चांदी के बर्तन शरीर में ठंडक लाते हैं और बैक्टीरिया को नष्ट करने में सक्षम हैं।

ये पाचन को बेहतर बनाते हैं, लेकिन खट्टे या नमकीन भोजन को इनमें परोसने से बचें, क्योंकि इससे रासायनिक प्रतिक्रिया हो सकती है। चांदी का सीमित उपयोग ही सबसे उत्तम है।

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तांबा और कांसा

तांबे के बर्तन स्वास्थ्य के लिए वरदान हैं। इनमें रातभर रखा पानी विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालता है, लीवर को मजबूत करता है और पाचन को दुरुस्त रखता है।

 

लेकिन दाल, दूध या खट्टे पदार्थ तांबे में न रखें, क्योंकि इससे नुकसान हो सकता है। कांसे के बर्तन भी आयुर्वेद में विशेष स्थान रखते हैं।

 

ये गैस और एसिडिटी को कम करते हैं और पाचन शक्ति को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, दूध या खट्टे व्यंजनों से कांसे की रासायनिक प्रतिक्रिया हो सकती है, इसलिए इनका उपयोग सावधानी से करें।

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पीतल और लोहा

पीतल के बर्तन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में सहायक हैं, लेकिन इनमें दूध या घी रखने से ये जल्दी खराब हो सकते हैं।

लोहे के बर्तन आयरन की कमी को पूरा करते हैं और हीमोग्लोबिन बढ़ाते हैं, जो एनीमिया से जूझ रहे लोगों के लिए फायदेमंद है।

लेकिन खट्टे पदार्थों के संपर्क में आने पर लोहे में जंग लगने का खतरा रहता है, इसलिए इन्हें सावधानी से इस्तेमाल करें। दोनों धातुएं पोषण देती हैं, लेकिन सही भोजन के साथ इनका उपयोग जरूरी है।

 

स्टील, एल्युमिनियम और मिट्टी

आजकल स्टील के बर्तन सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। ये टिकाऊ और सुरक्षित हैं, लेकिन स्वास्थ्यवर्धक गुणों की कमी इन्हें सामान्य बनाती है।

दूसरी ओर, एल्युमिनियम के बर्तन हल्के और सस्ते हैं, पर लंबे समय तक उपयोग से ये शरीर में जमा होकर अल्जाइमर जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा सकते हैं। मिट्टी के बर्तन सबसे प्राकृतिक विकल्प हैं।

इनमें पकाया भोजन स्वादिष्ट और ठंडा रहता है, जो पाचन और सेहत के लिए लाभकारी है। हालांकि, मिट्टी के बर्तन नाजुक होते हैं और आसानी से टूट सकते हैं, जिससे इन्हें संभालना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

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सही बर्तन चुनें, सेहत संवारें

आयुर्वेद हमें सिखाता है कि बर्तन का चुनाव सिर्फ सुविधा नहीं, बल्कि सेहत का सवाल है। सोने-चांदी जैसे महंगे विकल्पों की जगह तांबा, कांसा और मिट्टी जैसे प्राकृतिक बर्तन रोजमर्रा में अपनाए जा सकते हैं।

लेकिन हर बर्तन के साथ सावधानी बरतें—खट्टे, दूधिया या नमकीन पदार्थों को सही धातु में न रखें। 2024 में आयुर्वेद विशेषज्ञों ने भी जोर दिया कि मिट्टी और तांबे के बर्तनों का पुनर्जनन भारत में स्वास्थ्य जागरूकता बढ़ा सकता है।

अपनी रसोई को सेहत का मंदिर बनाएं, सही बर्तन चुनकर लंबी उम्र और मजबूत इम्युनिटी पाएं।

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