नई दिल्ली. बॉलीवुड की बेमिसाल अभिनेत्री स्मिता पाटिल भले ही कम उम्र में दुनिया छोड़ गईं, लेकिन उनकी फिल्में आज भी समाज की सच्चाई को बयां करती हैं। 17 अक्टूबर 1955 को पुणे में जन्मीं स्मिता की जयंती पर उनके पति और अभिनेता राज बब्बर ने उन्हें भावुक श्रद्धांजलि दी।
इंस्टाग्राम पर स्मिता की तस्वीर साझा करते हुए राज ने लिखा, “उनकी जटिल किरदारों को सहजता से जीने की कला और सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ ने उन्हें अनूठी पहचान दी। कम समय में उन्होंने जो मुकाम हासिल किया, वह अतुलनीय है। उनका जाना एक ऐसी कमी छोड़ गया, जो हमेशा महसूस होगी।”
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स्मिता की फिल्में न सिर्फ मनोरंजन थीं, बल्कि समाज के सामने आलोचनात्मक सवाल भी खड़े करती थीं। उनकी जयंती पर आइए, उनकी उन चार फिल्मों पर नजर डालते हैं, जो समाज के लिए आईना बनकर उभरीं और अपने समय की मिसाल बनीं।
≈भूमिका’ (1977): इस फिल्म में स्मिता ने एक ऐसी महिला का किरदार निभाया, जो परिवार के लिए अभिनय की दुनिया में कदम रखती है, लेकिन उसका पति ही उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन जाता है। यह फिल्म महिलाओं के संघर्ष और उनके अधिकारों की लड़ाई को बखूबी दर्शाती है। स्मिता की संजीदा अभिनय ने इसे अपने समय से कहीं आगे की रचना बना दिया। इसे श्याम बेनेगल ने निर्देशित किया था, और स्मिता की परफॉर्मेंस को आज भी याद किया जाता है।
‘अर्थ’ (1982): महेश भट्ट की यह फिल्म स्मिता के करियर का एक और रत्न है। इसमें उन्होंने एक ऐसी औरत का रोल निभाया, जो एक शादीशुदा पुरुष के प्यार में पड़ती है। भले ही यह साइड रोल था, लेकिन स्मिता ने अपने अभिनय से हर सीन में जान डाल दी। माना जाता है कि यह फिल्म महेश भट्ट और परवीन बाबी के रिश्ते से प्रेरित थी। स्मिता की भावनात्मक गहराई ने इस किरदार को अविस्मरणीय बना दिया।
‘बाजार’ (1982): इस फिल्म ने मानव तस्करी और दुल्हन की आड़ में लड़कियों की खरीद-फरोख्त जैसे गंभीर मुद्दे को उजागर किया। स्मिता ने नजमा के किरदार में अपने अभिनय से दर्शकों का दिल जीता। नसीरुद्दीन शाह और सुप्रिया पाठक जैसे कलाकारों के साथ उनकी केमिस्ट्री ने इस सामाजिक ड्रामे को और प्रभावशाली बनाया। यह फिल्म उस दौर की कुप्रथाओं पर करारा प्रहार थी।
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‘मिर्च मसाला’ (1987): केतन मेहता की यह फिल्म महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण पर केंद्रित थी। स्मिता ने एक मिर्च कारखाने में काम करने वाली महिला का किरदार निभाया, जो अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करती है। नसीरुद्दीन शाह के साथ उनकी जोड़ी ने कहानी को जीवंत किया। यह फिल्म नारी शक्ति और सामाजिक बदलाव का प्रतीक बनी।
स्मिता पाटिल की ये फिल्में न सिर्फ सिनेमा की कालजयी कृतियां हैं, बल्कि समाज को झकझोरने और बदलाव की प्रेरणा देने वाली कहानियां भी हैं। उनकी विरासत आज भी प्रासंगिक है और नई पीढ़ी को प्रेरित करती रहेगी।