मुजफ्फरनगर के ज़िला कलेक्ट्रेट पर जाट महासभा के बैनर तले बुधवार को सर्व समाज के सैंकड़ों लोग जुटे। चौधरी चरण सिंह चौक पर सत्यप्रकाश रेशु के कथित अवैध कब्जे और होर्डिंग्स के खिलाफ खूब नारे गूंजे। DM के नाम ज्ञापन देने की पूरी तैयारी थी।

लेकिन धरने की सूचना मिलते ही सत्यप्रकाश रेशु ने व्यापारी नेता संजय मित्तल और पूर्व बीजेपी विधायक अशोक कंसल के साथ धरना स्थल पर हाजिरी दी।
दबाव में ठेके घुटने?
बढ़ते दबाव और साख पर बट्टा लगने के डर से सत्यप्रकाश रेशु ने झुकना बेहतर समझा। उन्होंने धरना स्थल पहुंच कर चौधरी चरण सिंह चौक पर सहमति जताई। होर्डिंग दान करने की घोषणा की।
जिसका सर्वसम्मति से स्वागत हुआ और धरना समाप्त कर दिया गया। इसके बाद पूरे विवाद का पटाक्षेप हो गया।

सवाल अभी बाकी
होर्डिंग दान से चौक का सम्मान तो बच गया, लेकिन पूरा मामला अवैध होर्डिंग्स के कारोबार को लेकर एक सवाल खड़ा कर गया।
जाट महासभा ने आरोप लगाया था कि रेशु की कंपनी ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हजारों यूनिपोल लगाए, लेकिन अनुमति नहीं ली। PWD हो या फ़िर सिंचाई विभाग, किसी से भी NOC नहीं ली गई, जिससे सरकारी राजस्व को नुकसान हो रहा है।
दूसरी तरफ, किसानों की फसलें धूप न मिलने से तबाह हो रही है। अब सवाल ये है कि क्या ‘होर्डिंग दान’ के बाद भी इन आरोपों की जांच होगी या मामला दब जाएगा?
किसानों की फसलें और राजस्व का सवाल
प्रदर्शनकारियों ने कहा था कि होर्डिंग्स से फसलें सूख रही हैं। SDM स्तर से सर्वे और क्षति भरपाई की मांग थी। 15 दिन का अल्टीमेटम दिया गया था कि होर्डिंग्स न हटे तो खुद हटाएंगे या महापुरुषों के चित्र लगाएंगे।
अब समझौता हो गया, लेकिन राजस्व हानि की वसूली और जांच का क्या होगा?

चौधरी साहब का सम्मान बचाने की जीत
जाट महासभा ने इसे चौधरी चरण सिंह के सम्मान की जीत बताया। अध्यक्ष धर्मवीर बालियान बोले कि सत्य प्रकाश रेशु ने बड़ा दिल दिखाया और धरना स्थल पर पहुंच कर जिस होर्डिंग पर चौधरी चरण सिंह चौक का बैनर लगा था, वो दान कर दिया है, जिसके बाद पूरा विवाद ख़त्म हो गया है।
क्या बोले सत्य प्रकाश रेशु?
इस संबंध में सत्य प्रकाश रेशु ने कहा कि “घर में चार बर्तन होते हां तो खड़कते ही हैं। कुछ भ्रांतियां थी, जो दूर हो गई है। अब कोई विवाद नहीं है।”
प्रशासन की भूमिका पर नजर
यह समझौता प्रदर्शन की ताकत दिखाता है, लेकिन अवैध होर्डिंग्स और राजस्व हानि की जांच जरूरी है। मुजफ्फरनगर में यह मामला सबक बन सकता है कि बड़े नेताओं के नाम से खिलवाड़ महंगा पड़ता है।




