नई दिल्ली. कांग्रेस नेता अनिल भारद्वाज ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम की 20वीं वर्षगांठ के अवसर पर इसे भारतीय लोकतंत्र का एक ऐतिहासिक और क्रांतिकारी कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह कानून नागरिकों को सशक्त बनाने और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता लाने का एक प्रभावी साधन रहा है।
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उन्होंने कहा कि 12 अक्टूबर 2005 को यूपीए सरकार के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में लागू हुआ यह कानून भारतीय लोकतंत्र को विश्व में सबसे पारदर्शी और जवाबदेह मॉडलों में से एक बनाने में सहायक रहा।
भारद्वाज ने बताया कि यूपीए सरकार ने 2014 तक इस कानून को और मजबूत करने के लिए कई कदम उठाए, जिससे प्रशासनिक पारदर्शिता को बढ़ावा मिला और सरकारी जानकारी जनता तक आसानी से पहुंची।
कांग्रेस नेता ने वर्तमान भाजपा नीत एनडीए सरकार पर आरटीआई को कमजोर करने का गंभीर आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि 2014 के बाद से सरकार ने इस कानून की स्वायत्तता को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है।
विशेष रूप से, 2019 के आरटीआई संशोधन के जरिए सूचना आयुक्तों का कार्यकाल, जो पहले पांच वर्ष का निश्चित था, अब सरकार के नियंत्रण में कर दिया गया है। इसके अलावा, उनकी सेवा शर्तों को भी बदल दिया गया, जिससे सूचना आयोग की स्वतंत्रता प्रभावित हुई है।
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भारद्वाज ने डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) अधिनियम की धारा 43 का भी उल्लेख किया, जो व्यक्तिगत जानकारी साझा करने पर प्रतिबंध लगाती है। उन्होंने इसे आरटीआई के जनहितकारी उद्देश्यों के खिलाफ बताया और कहा कि यह प्रावधान लोकतंत्र की पारदर्शिता को कमजोर करता है।
कांग्रेस ने इस अवसर पर दो प्रमुख मांगें रखीं। पहली, 2019 के आरटीआई संशोधन को रद्द कर सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और सेवा शर्तों को पहले की तरह सुरक्षित किया जाए। दूसरी, डीपीडीपी अधिनियम की धारा 43 की समीक्षा कर इसमें संशोधन किया जाए, ताकि आरटीआई के उद्देश्यों को कोई नुकसान न पहुंचे।
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अनिल भारद्वाज ने जोर देकर कहा कि आरटीआई केवल एक कानून नहीं, बल्कि भारतीय नागरिकों के लिए सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, जो सरकार को जवाबदेह बनाता है।