- प्रदूषण की चपेट में मुजफ्फरनगर, शहर की सांसों पर संकट
- अमित सैनी, मुजफ्फरनगर से ‘द एक्स इंडिया‘ के लिए
मुजफ्फरनगर। राजधानी दिल्ली (Delhi) से महज 120 किमी दूर और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) का हिस्सा मुजफ्फरनगर जिला कभी अपनी कृषि (Agriculture) और औद्योगिक समृद्धि (Industrial Prosperity) के लिए जाना जाता था। लेकिन आज यह विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों (Most Polluted Cities) की सूची में अपनी काली छवि बना चुका है।
फैक्ट्रियों (Factories) की बेलगाम चिमनियां (Chimneys) काला, जहरीला धुआं (Toxic Smoke) उगल रही हैं, जो हवा (Air Pollution) और जल (Water Pollution) को दूषित कर रही हैं। जानसठ रोड (Jansath Road), भोपा रोड (Bhopa Road) और जौली रोड (Jauly Road) पर वायरल वीडियो (Viral Videos) इस डरावने सच को उजागर कर रहे हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) की सुस्ती और कागजी बाजीगरी (Paper Jugglery) से लोग हैरान-परेशान हैं।
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हाल ही में RTI कार्यकर्ता सुमित मलिक (Sumit Malik) की शिकायत पर डीएम (DM) ने जांच के आदेश दिए, जिसमें 17 फैक्ट्रियों की जांच के बाद 52 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना (Fine) लगाया गया। लेकिन सवाल यह है ‘क्या यह कार्रवाई प्रदूषण के इस तांडव को रोक पाएगी’?
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जानसठ रोड, भोपा रोड और जौली रोड: जहरीले धुएं का काला साया
जानसठ रोड, भोपा रोड और जौली रोड पर शाम ढलते ही हवा में जहर घुल जाता है। पेपर मिल्स (Paper Mills), कैमिकल प्लांट्स (Chemical Plants), और वेस्ट टायर रिसाइक्लिंग यूनिट्स (Waste Tire Recycling Units) जैसी फैक्ट्रियां दिन-रात काला धुआं उगल रही हैं।
वायरल वीडियो में साफ दिखता है कि इन चिमनियों से निकलने वाला धुआं आर्द्रता (Humidity) और बारिश (Rain) के कारण जमीन से चंद फुट ऊपर लटक जाता है, जिससे विजिबिलिटी शून्य (Zero Visibility) हो जाती है।
राहगीरों (Passersby) को सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन (Eye Irritation), और वाहन चालकों (Vehicle Drivers) को हादसों का खतरा बना रहता है।
एक स्थानीय ग्रामीण राजेश (Rajesh) ने बताया, “धुआं इतना घना होता है कि सड़क पर कुछ दिखता ही नहीं। यह न केवल सेहत को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि हादसों (Accidents) का कारण भी बन रहा है।”
मानसून (Monsoon) की बारिश के कारण अभी एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) ग्रीन जोन (Green Zone) में है, लेकिन सर्दियों में यह रेड जोन (Red Zone) में पहुंच जाएगा, जैसा कि हर साल होता है।
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उत्तर भारत का कूड़ा हब: मुजफ्फरनगर में दिल्ली–देहरादून और चंडीगढ का कचरा
हैरान करने वाली सच्चाई यह है कि मुजफ्फरनगर उत्तर भारत का सबसे बड़ा कूड़ा डंपिंग यार्ड (Dumping Yard) बन चुका है। दिल्ली (Delhi), देहरादून (Dehradun), और चंडीगढ़ (Chandigarh) से हजारों टन रिफ्यूज्ड ड्राइव फ्यूल (RDF) कूड़ा (Waste) रोजाना यहां की फैक्ट्रियों में जलाया जा रहा है।
ट्रक चालक फरमान (Farman) ने खुलासा किया, “एक डंपर में 45-48 टन RDF आता है। हम रोजाना भोपा रोड (Bhopa Road), जौली रोड और जानसठ रोड की पेपर मिल्स में इसे पहुंचाते हैं।”
कहने को यह रिसाइक्लिंग (Recycling) के लिए है, लेकिन हकीकत में दिल्ली के गाजीपुर (Ghazipur) जैसे कूड़े के पहाड़ों से दलालों (Brokers) के जरिए सीधे जलाया जा रहा है। यह जहरीला धुआं (Toxic Smoke) हवा में घुलकर लोगों की सांसों को जहर बना रहा है। क्या यह पर्यावरणीय अपराध (Environmental Crime) नहीं है?

ग्रामीणों पर कहर: कैंसर और सांस की बीमारियां!
जानसठ और जौली रोड के आसपास के गांव जैसे निराना (Nirana) और भिक्की (Bhikki) में ग्रामीणों (Villagers) की जिंदगी जहन्नुम बन चुकी है। दूषित जल और हवा (Contaminated Water and Air) की वजह से कैंसर (Cancer), फेफड़ों की बीमारियां (Lung Diseases), और आंखों में जलन (Eye Irritation) आम हो गए हैं।
निराना गांव में कैंसर से कई मौतें हो चुकी हैं और दर्जनों लोग संक्रमित हैं।
ग्रामीण निर्देश (Nirdesh) ने बताया, “रोजाना बाइक से काम पर जाते हैं, लेकिन धुएं से आंखें जलती हैं। सांस लेना मुश्किल हो जाता है।”
यह प्रदूषण न केवल सेहत को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि ग्रामीणों की आजीविका (Livelihood) पर भी असर डाल रहा है। बारिश की मेहरबानी से अभी राहत है, लेकिन सर्दियों में यह धुआं कोहरे (Fog) के साथ मिलकर मौत का कॉकटेल बन जाएगा।

RTI कार्यकर्ता की पुकार: 52 लाख का जुर्माना, फिर भी नाकाफी
20 अगस्त को किसान दिवस (Kisan Diwas) के मौके पर RTI कार्यकर्ता सुमित मलिक (Sumit Malik) ने जिलाधिकारी उमेश मिश्रा (DM Umesh Mishra) के सामने प्रदूषण की समस्या को जोरदार तरीके से उठाया।
सुमित ने फैक्ट्रियों द्वारा वायु-जल प्रदूषण (Air and Water Pollution) और प्रतिबंधित प्लास्टिक कचरा (Banned Plastic Waste) जलाने की शिकायत दर्ज की। इसके बाद डीएम ने SDM और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (UPPCB) की संयुक्त जांच टीम (Joint Investigation Team) गठित की।
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क्षेत्रीय प्रदूषण कार्यालय के पत्रांक के मुताबिक, 17 फैक्ट्रियों की जांच में दो को कारण बताओ नोटिस (Show-Cause Notice) जारी किया गया और कुछ में गंभीर अनियमितताओं (Serious Irregularities) के लिए 52 लाख 2 हजार 500 रुपये का जुर्माना (Environmental Fine) लगाया गया। लेकिन यह कार्रवाई नाकाफी है।
सवाल उठता है क्या इतने बड़े पैमाने पर फैल रहे प्रदूषण को रोकने के लिए यह जुर्माना और नोटिस काफी हैं? ग्रामीणों का कहना है कि ये कदम महज खानापूर्ति (Tokenism) हैं।
प्रदूषण बोर्ड की ‘कागजी बाजीगरी‘! जवाबदेही का अभाव!
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की लापरवाही (Negligence) चरम पर है। वायरल वीडियो, ग्रामीणों की शिकायतें (Complaints) और मीडिया रिपोर्ट्स के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं। RO गीतेश चंद्रा जैसे अधिकारी कॉल और व्हाट्सएप मैसेज (WhatsApp Messages) का जवाब देने से कतराते हैं। नोटिस भेजकर कागजी कार्रवाई (Paperwork) पूरी कर ली जाती है, लेकिन फैक्ट्रियां बेरोकटोक चल रही हैं।
पिछले कुछ हफ्तों में दर्जनों वीडियो वायरल होने के बाद भी कोई फैक्ट्री सील (Sealed) नहीं हुई। क्या बोर्ड उद्योगपतियों (Industrialists) के दबाव में है? या भ्रष्टाचार (Corruption) का खेल चल रहा है?
सुमित मलिक ने कहा, “हर कोई इस जहर को देख रहा है, सिवाय प्रदूषण बोर्ड के। यह शर्मनाक है कि जनता की जान की कीमत पर फैक्ट्रियां चल रही हैं।”
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क्या है समाधान? प्रशासन पर सवालों का तीर
मुजफ्फरनगर में प्रदूषण का यह संकट अब राष्ट्रीय चर्चा का विषय बन चुका है। प्रशासन को चाहिए कि:
- कठोर कार्रवाई: दोषी फैक्ट्रियों को सील करें और लाइसेंस रद्द (License Cancellation) करें।
- सख्त निगरानी: रियल-टाइम AQI मॉनिटरिंग (Real-Time AQI Monitoring) और ड्रोन सर्वे (Drone Survey) शुरू करें।
- कूड़ा प्रबंधन: दिल्ली और अन्य शहरों से आने वाले RDF कूड़े पर रोक लगाएं।
- जागरूकता अभियान: प्रदूषण से होने वाली बीमारियों पर जागरूकता (Awareness Campaigns) बढ़ाएं।
- स्वास्थ्य सुविधाएं: निराना जैसे गांवों में मुफ्त स्वास्थ्य शिविर (Free Health Camps) और कैंसर स्क्रीनिंग (Cancer Screening) शुरू करें।

भविष्य का सवाल: मुजफ्फरनगर बचेगा या डूबेगा?
52 लाख का जुर्माना और दो नोटिस इस जहरीले तूफान को रोकने के लिए नाकाफी हैं। बारिश की मेहरबानी से अभी AQI ग्रीन है, लेकिन सर्दियों में यह रेड जोन में होगा, और तब कैंसर, अस्थमा (Asthma), और फेफड़ों की बीमारियां और बढ़ेंगी।
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मुजफ्फरनगर को बचाने के लिए कठोर कदम जरूरी हैं। क्या प्रशासन जागेगा या यह शहर प्रदूषण की काली चादर में दम तोड़ देगा? यह सवाल हर मुजफ्फरनगरी के मन में है। RTI कार्यकर्ता सुमित मलिक जैसे लोग उम्मीद की किरण हैं, लेकिन बिना सिस्टम के सहयोग के यह जंग अधूरी है।