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नेपाल: जेन-जेड प्रदर्शनकारियों पर पुलिस हिंसा और सोशल मीडिया बैन से उबलता आक्रोश, जांच समिति गठित, मगर क्या होगा हल?

Nepal Gen-Z Protests: Police Violence Sparks Outrage
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  • काठमांडू में जेन-जेड का आक्रोश: सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतरे युवा, 20 लोग मरे और 300 से अधिक घायल

 

काठमांडू, (नेपाल)। नेपाल की राजधानी काठमांडू में हजारों युवाओं, जिन्हें ‘जेन-जेड’ (Gen-Z) के नाम से जाना जा रहा है, ने सरकार द्वारा लगाए गए सोशल मीडिया बैन (Social Media Ban) और भ्रष्टाचार (Corruption) के खिलाफ सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन (Protests) किया। लेकिन यह प्रदर्शन तब हिंसक (Violent) हो गया जब पुलिस (Nepal Police) ने इसे दबाने के लिए वाटर कैनन (Water Cannons), रबर बुलेट्स (Rubber Bullets), टीयर गैस (Tear Gas), और लाइव एमुनिशन (Live Ammunition) का इस्तेमाल किया।

परिणामस्वरूप, कम से कम 20 लोग मारे गए और 300 से अधिक घायल (Injured) हो गए। काठमांडू मेडिकल कॉलेज (Kathmandu Medical College) और एवरेस्ट हॉस्पिटल (Everest Hospital) में घायलों का इलाज चल रहा है। इस हिंसा ने न केवल नेपाल को हिलाकर रख दिया, बल्कि स्थानीय लोगों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में गहरा आक्रोश (Outrage) पैदा कर दिया है।

 

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नेपाल सरकार ने हिंसा की जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति (High-Level Investigation Committee) गठित की है, जो 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। लेकिन सवाल यह है क्या यह समिति जवाबदेही सुनिश्चित कर पाएगी या यह सिर्फ कागजी खानापूर्ति (Paperwork) होगी?

 

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पुलिस की बर्बरता, स्थानीय लोगों का गुस्सा

काठमांडू में पुलिस के रवैये की स्थानीय लोगों ने कड़े शब्दों में निंदा की है।

राम कृष्ण श्रेष्ठ ने कहा, “पुलिस ने जिस तरह हमारे युवाओं पर बल प्रयोग (Use of Force) किया, उसकी जितनी निंदा करें, कम है। युवा हमारे देश का भविष्य हैं। उन्हें मारकर, उनकी आवाज दबाकर क्या हासिल होगा? यह लोकतंत्र (Democracy) पर कुठाराघात है।”

उन्होंने आगे कहा, “हमने सोचा था कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण (Peaceful) होगा, लेकिन पुलिस की हिंसा ने इसे खूनी बना दिया। हमारे बच्चे अस्पतालों में जिंदगी और मौत से जूझ रहे हैं।”

 

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एक अन्य नागरिक सुलेमानी (Sulemani), ने भी पुलिस की बर्बरता की आलोचना की और कहा, “छह लोग गंभीर रूप से घायल हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले युवाओं को इस तरह कुचलना स्वीकार्य नहीं। सरकार को यह समझना होगा कि यह आंदोलन सिर्फ सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और तानाशाही (Authoritarianism) के खिलाफ है।”

 

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सोशल मीडिया बैन: अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला

4 सितंबर 2025 को नेपाल सरकार ने फेसबुक (Facebook), इंस्टाग्राम (Instagram), यूट्यूब (YouTube), एक्स (X), व्हाट्सएप (WhatsApp) समेत 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध (Ban) लगा दिया। सरकार का तर्क था कि ये कंपनियां नेपाल में रजिस्ट्रेशन (Registration) कराने में विफल रहीं और इनके जरिए फर्जी खातों (Fake Accounts) से देश-विरोधी गतिविधियां (Anti-National Activities) हो रही थीं।

लेकिन युवाओं ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of Expression) पर हमला माना। काठमांडू के मैतीघर मंडला (Maitighar Mandala), बनेश्वर (Baneshwor), और सिंहदरबार (Singha Durbar) जैसे इलाकों में हजारों युवा, जिनमें स्कूल-कॉलेज के छात्र (Students) शामिल थे, “सोशल मीडिया पर बैन हटाओ, भ्रष्टाचार बंद करो” जैसे नारे लगाते हुए सड़कों पर उतरे।

 

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हिंसा का दायरा: काठमांडू से लेकर अन्य शहरों तक

प्रदर्शन केवल काठमांडू तक सीमित नहीं रहे। पोखरा (Pokhara), दमक (Damak), चितवन (Chitwan), रूपंदेही (Rupandehi), और इटहरी (Itahari) जैसे शहरों में भी हिंसा भड़क उठी। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी संपत्तियों (Government Properties) में तोड़फोड़ की, वाहनों में आग (Arson) लगाई, और संसद भवन (Parliament Complex) की बैरिकेड्स तोड़कर अंदर घुसने की कोशिश की।

पुलिस ने जवाब में रबर बुलेट्स, टीयर गैस और लाइव राउंड्स का इस्तेमाल किया, जिसमें 16 लोग काठमांडू घाटी (Kathmandu Valley) में और दो इटहरी में मारे गए।

एक प्रदर्शनकारी ने बताया, “पुलिस ने अंधाधुंध फायरिंग (Indiscriminate Firing) की। मेरे दोस्त को गोली लगी, जो मेरे पीछे खड़ा था।”

 

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सरकार का रुख: जांच समिति और मुआवजा

हिंसा की गंभीरता को देखते हुए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (KP Sharma Oli) ने एक उच्च-स्तरीय जांच समिति (Investigation Committee) गठित करने की घोषणा की, जो 15 दिनों में अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। यह समिति हिंसा के कारणों, पुलिस कार्रवाई (Police Action), और स्थिति के बेकाबू होने के पहलुओं की जांच करेगी।

ओली ने कहा, “हम युवाओं की मांगों के प्रति उदासीन नहीं थे। लेकिन प्रदर्शन में बाहरी तत्वों (External Elements) की घुसपैठ ने इसे हिंसक बना दिया।”

उन्होंने दावा किया कि सोशल मीडिया बैन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश का पालन था, न कि सरकार की नीति। सरकार ने मृतकों के परिवारों को 5 लाख रुपये का मुआवजा (Compensation) और घायलों के लिए मुफ्त इलाज (Free Treatment) का वादा किया है।

 

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गृह मंत्री का इस्तीफा: नैतिक जिम्मेदारी

हिंसा के बाद गृह मंत्री रमेश लेखक (Ramesh Lekhak) ने नैतिक जिम्मेदारी (Moral Responsibility) लेते हुए इस्तीफा दे दिया। नेपाली कांग्रेस (Nepali Congress) के एक अन्य मंत्री, कृषि मंत्री रामनाथ अधिकारी (Ramnath Adhikari), ने भी सरकार की दमनकारी नीतियों (Repressive Policies) के खिलाफ इस्तीफा दिया।

 

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यह इस्तीफे सत्तारूढ़ गठबंधन (Ruling Coalition) में गहरे मतभेदों को दर्शाते हैं। नेपाली कांग्रेस के नेताओं ने बैन हटाने की मांग की, लेकिन ओली ने इसे खारिज कर दिया। हालांकि, देर रात बिना किसी औपचारिक घोषणा के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स फिर से चालू हो गए।

 

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: संयुक्त राष्ट्र और दूतावासों का बयान

संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने हिंसा की निंदा करते हुए “तत्काल और पारदर्शी जांच” (Prompt and Transparent Investigation) की मांग की।

UN मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शमदासानी (Ravina Shamdasani) ने कहा, “सुरक्षा बलों द्वारा अनावश्यक और असंगत बल प्रयोग (Disproportionate Use of Force) की कई गंभीर शिकायतें मिली हैं।”

ऑस्ट्रेलिया, फिनलैंड, फ्रांस, जापान, कोरिया, ब्रिटेन, और अमेरिका के दूतावासों (Embassies) ने संयुक्त बयान में शांतिपूर्ण सभा (Peaceful Assembly) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) का समर्थन किया और सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की।

 

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काठमांडू में कर्फ्यू: सड़कें वीरान, दुकानें बंद

हिंसा के बाद काठमांडू में संसद भवन, राष्ट्रपति भवन (Rastrapati Bhawan), और प्रधानमंत्री आवास (PM Residence) के आसपास कर्फ्यू (Curfew) लगा दिया गया।

मंगलवार को पुलिस ने चप्पे-चप्पे पर तैनाती (Heavy Police Deployment) की और पथराव वाली जगहों को पूरी तरह सील (Sealed) कर दिया। दुकानें बंद (Shops Closed) हैं, सड़कें वीरान (Deserted Streets) हैं, और आम लोगों के आवागमन पर पाबंदी (Movement Restrictions) है।

बिरगंज (Birgunj), भैरहवा (Bhairahawa), बुटवल (Butwal), पोखरा, इटहरी, और दमक जैसे शहरों में भी कर्फ्यू लागू है।

 

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भ्रष्टाचार और असमानता: प्रदर्शन की जड़

युवाओं का गुस्सा सिर्फ सोशल मीडिया बैन तक सीमित नहीं है। प्रदर्शनकारी भ्रष्टाचार, बेरोजगारी (Unemployment), और सामाजिक असमानता (Social Inequality) के खिलाफ भी आवाज उठा रहे हैं।

सुलेमानी ने कहा, “राजनीतिक घरानों (Political Dynasties) के बच्चे विदेशों में लग्जरी लाइफ (Luxury Life) जी रहे हैं, जबकि मध्यमवर्गीय परिवारों (Middle-Class Families) के बच्चे रोजगार के लिए जूझ रहे हैं।”

 

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पूर्व उप-प्रधानमंत्री की चेतावनी

नेपाल के पूर्व उप-प्रधानमंत्री राजेंद्र महतो (Rajendra Mahato) ने कहा, “सोशल मीडिया बैन तुरंत हटाना चाहिए। दोषियों को सजा (Punishment) मिले, लेकिन घायल प्रदर्शनकारियों के साथ मानवीय व्यवहार (Humane Treatment) होना चाहिए। कर्फ्यू से प्रदर्शन नहीं रुकेंगे, बल्कि यह देशभर में फैल सकता है।”

 

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दांव पर नेपाल का भविष्य!

जेन-जेड का यह आंदोलन नेपाल के युवाओं की हताशा और आक्रोश को दर्शाता है। सोशल मीडिया बैन, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ उनकी आवाज को दबाने की कोशिश ने स्थिति को और विस्फोटक बना दिया है।

जांच समिति और मुआवजे के वादे क्या इस आग को शांत कर पाएंगे? या यह आंदोलन नेपाल के राजनीतिक परिदृश्य (Political Landscape) को बदल देगा? काठमांडू की सड़कों पर यह सवाल गूंज रहा है।

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