नई दिल्ली. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन से मिलने की इच्छा जाहिर की है। एयरफोर्स वन में पत्रकारों से बातचीत के दौरान ट्रंप ने कहा, “मैं 100% तैयार हूं।
हमारी समझ अच्छी है, और अगर मौका मिला तो मैं उनसे मिलूंगा।” यह बयान ट्रंप के आगामी एशिया यात्रा के बीच आया है, जहां दक्षिण कोरिया का दौरा शामिल है। लेकिन सवाल यह उठता है कि ट्रंप का यह अचानक रुख क्या सिर्फ कोरियाई प्रायद्वीप में शांति की कोशिश है, या रूस और चीन को संदेश देने की रणनीति? आइए, इसकी वजहें समझें।
ट्रंप-किम का पुराना ‘रिश्ता’: 2018-2019 की यादें
ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल (2017-2021) में किम से तीन ऐतिहासिक मुलाकातें कीं:
- सिंगापुर (2018): पहली शिखर बैठक, जहां दोनों ने परमाणु निरस्त्रीकरण पर सहमति जताई।
- वियतनाम (2019): दूसरी बैठक, जो बिना समझौते के समाप्त हुई।
- डीएमजेड (2019): कोरियाई सीमा पर तीसरी अनौपचारिक मुलाकात।
इनसे उम्मीद बंधी थी कि उत्तर कोरिया का न्यूक्लियर प्रोग्राम रुकेगा, लेकिन ट्रंप के जाने के बाद बातचीत ठप हो गई। किम ने मिसाइल परीक्षण तेज कर दिए। अब 2025 में ट्रंप का ‘डीलमेकर’ रुख फिर सामने आया है।
ट्रंप खुद को ‘गैर-परंपरागत कूटनीतिज्ञ’ दिखाना पसंद करते हैं, और किम से मिलना उनकी ‘साहसी डिप्लोमेसी’ को चमकाने का मौका दे सकता है। घरेलू राजनीति में भी यह ‘शांति दूत’ की छवि मजबूत करेगा।
दक्षिण कोरिया का दबाव: संवाद की जरूरत
दक्षिण कोरिया की नई सरकार (राष्ट्रपति ली जे-म्युंग के नेतृत्व में) संवाद की पक्षधर है। ट्रंप का एशिया दौरा (अक्टूबर के अंत में दक्षिण कोरिया और जापान) के दौरान एपीईसी शिखर सम्मेलन (ग्योंगजू, 31 अक्टूबर-1 नवंबर) में किम से मिलने की अटकलें हैं।
दक्षिण कोरिया ने ट्रंप को आमंत्रित किया है, और ली ने कहा, “ट्रंप किम से मिलकर कोरियाई प्रायद्वीप में शांति ला सकते हैं।” अमेरिका का सहयोगी दक्षिण कोरिया को समर्थन देकर ट्रंप एशिया में स्थिरता का संदेश देना चाहते हैं।
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रूस-उत्तर कोरिया की नजदीकी: अमेरिका की चिंता
ट्रंप का बयान रूस-उत्तर कोरिया के बढ़ते गठजोड़ के बीच आया है। 2024 में दोनों ने रणनीतिक साझेदारी समझौता किया, जिसमें रक्षा और तकनीकी सहयोग शामिल है। उत्तर कोरिया ने रूस को यूक्रेन युद्ध के लिए तोपखाने, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइलें दीं।
सितंबर 2025 में बीजिंग में शी जिनपिंग, व्लादिमीर पुतिन और किम की संयुक्त उपस्थिति ने ट्रंप को नाराज किया, जिन्होंने इसे “चीन के खिलाफ साजिश” कहा। ट्रंप ने कहा, “मैं किम से मिलूंगा ताकि रूस-उत्तर कोरिया की दोस्ती कमजोर हो।” यह कदम रूस को संकेत है कि अमेरिका एशिया में हस्तक्षेप कर सकता है।
चीन को संदेश: मध्यस्थता की जरूरत नहीं
चीन उत्तर कोरिया का सबसे बड़ा समर्थक है, जो प्योंगयांग को आर्थिक और कूटनीतिक सहारा देता है। ट्रंप का सीधा संवाद का रुख चीन को दिखाता है कि वाशिंगटन को बीजिंग की मध्यस्थता की जरूरत नहीं।
ट्रंप-शी की एपीईसी में संभावित मुलाकात (31 अक्टूबर) से पहले यह बयान व्यापार युद्ध (100% टैरिफ की धमकी) के बीच आया है। ट्रंप ने कहा, “मैं शी से भी मिलूंगा, लेकिन किम से बातचीत रूस-चीन गठबंधन को तोड़ेगी।”
क्या होगा परिणाम?
ट्रंप की ‘मुलाकात तत्परता’ बहुआयामी है: घरेलू राजनीति में छवि चमकाना, दक्षिण कोरिया को समर्थन, और रूस-चीन को काउंटर। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि किम की मजबूत स्थिति (परमाणु हथियारों का विस्तार) से असली समझौता मुश्किल है।
किम रूस-चीन से मजबूत हैं, और ट्रंप की मुलाकात सिर्फ प्रतीकात्मक रह सकती है। फिर भी, यह कूटनीतिक खेल का नया दौर शुरू करने का संकेत है।





