बांग्लादेश के गोपालगंज में 16 जुलाई, 2025 को हुई हिंसा ने देश में राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया है। इस घटना में अवामी लीग और उसकी सहयोगी इकाइयों के 5,400 से अधिक नेताओं और कार्यकर्ताओं पर मामला दर्ज किया गया है।
ढाका ट्रिब्यून के अनुसार, हिंसा से जुड़े 13 मामलों में 1,134 लोगों की पहचान हुई, जबकि 14,500 अज्ञात हैं। यह हिंसा गोपालगंज, जो शेख मुजीबुर रहमान का जन्मस्थान और हिंदू बहुल क्षेत्र है, में नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) के जुलूस पर हमले के बाद भड़की।
हिंसा का विवरण और परिणाम
16 जुलाई को एनसीपी का जुलूस गोपालगंज से मदारीपुर की ओर बढ़ रहा था, तभी अवामी लीग और उसकी छात्र इकाई बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर काफिले पर हमला किया।
हमलावरों ने पथराव, आगजनी, और क्रूड बम (कॉकटेल) फेंके, जिससे हालात बेकाबू हो गए। सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प में पांच लोग मारे गए, जिनमें दीप्तो साहा, रमजान काजी, सोहेल राना, इमोन तालुकदार, और रमजान मुंशी शामिल थे।
50 से अधिक लोग घायल हुए। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए प्रशासन ने कर्फ्यू लागू किया।
पुलिस कार्रवाई और आरोप
गोपालगंज सदर थाने के इंस्पेक्टर मोतिअर मोल्ला ने 29 जुलाई को नवीनतम एफआईआर दर्ज की, जिसमें 447 लोगों को नामजद और 5,000 अज्ञात लोगों को आरोपी बनाया गया। थानाध्यक्ष मीर मो. सज्जादुर रहमान ने इसकी पुष्टि की।
आरोपियों पर आतंकवाद-रोधी कानून के तहत राज्यविरोधी गतिविधियों, सरकारी कार्यों में बाधा डालने, और सुरक्षा बलों पर जानलेवा हमले का आरोप है।
एफआईआर में अवामी लीग के प्रमुख नेताओं, जैसे जिला अध्यक्ष महबूब अली खान, पूर्व मेयर शेख रकीब हुसैन, और युवा लीग के कार्यकारी अध्यक्ष एमएम मसूद राना के नाम शामिल हैं। अब तक 314 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और तनाव
गोपालगंज अवामी लीग का गढ़ माना जाता है, क्योंकि यह शेख हसीना और शेख मुजीबुर रहमान का गृहनगर है।
एनसीपी की रैली को अवामी लीग ने अपनी साख पर हमले के रूप में देखा। अवामी लीग पर हाल ही में प्रतिबंध और एनसीपी संयोजक नाहिद इस्लाम के गोपालगंज को “फासीवादी गढ़” कहने से तनाव बढ़ा।
कुछ विश्लेषकों का मानना है कि रैली का स्थान शेख मुजीबुर रहमान की विरासत को चुनौती देने का प्रयास था, जिसने हिंसा को भड़काया।
सामाजिक प्रभाव और मानवाधिकार
इस हिंसा ने गोपालगंज के हिंदू बहुल समुदाय में डर पैदा किया है। मानवाधिकार संगठन ऐन ओ सलिश केंद्र (एएसके) ने इसे शांतिपूर्ण सभा के अधिकार का उल्लंघन बताया।
हिंसा ने बांग्लादेश की नाजुक राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को उजागर किया है, जहां सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच टकराव बढ़ रहा है।