नई दिल्ली, 28 नवंबर। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के आधे कार्यकाल के बीच चल रही सत्ता परिवर्तन की जंग थमने का नाम नहीं ले रही। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी के लिए अभी इंतजार करना पड़ेगा। कांग्रेस आलाकमान ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि कोई हरी झंडी नहीं मिली है, और मौजूदा सीएम सिद्धारमैया अपने पद पर बने रहेंगे। यह फैसला पार्टी की एकजुटता बनाए रखने और 2028 के विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए लिया गया है।
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सिद्धारमैया का मजबूत आधार: 100+ विधायकों का समर्थन
राजनीतिक स्रोतों के अनुसार, सिद्धारमैया के पास 137 विधायकों वाली कांग्रेस विधायकीय दल में से 100 से ज्यादा विधायकों का मजबूत समर्थन है। दलित, पिछड़े वर्ग और वंचित समुदायों से जुड़े उनके गुट ने हाईकमान को आश्वासन दिया है कि सिद्धारमैया ही पूर्ण कार्यकाल पूरा करें। इससे शिवकुमार के दावे को झटका लगा, जिनके समर्थक विधायक दिल्ली कैंप कर रहे थे। सिद्धारमैया ने कहा, “मैंने हमेशा कहा है कि सरकार पूरे 5 साल चलेगी। हाईकमान का फैसला अंतिम है।”
हाईकमान का दखल: खड़गे ने राहुल को सौंपा मामला
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने गुरुवार को राहुल गांधी से फोन पर बात की और कहा कि 8 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा शीतकालीन सत्र से पहले इस विवाद को सुलझा लिया जाए। खड़गे ने कहा, “सोनिया जी, राहुल जी और मैं मिलकर इसे सुलझाएंगे। यह फैमिली डिफरेंस जैसा है, जल्द रिजॉल्व हो जाएगा।” राहुल ने सोनिया और प्रियंका गांधी से भी सलाह ली, लेकिन फैसला सिद्धारमैया के पक्ष में ही झुका। पार्टी सूत्रों के मुताबिक, 1 दिसंबर तक कोई बदलाव नहीं होगा, और शिवकुमार को ‘धैर्य’ रखने की हिदायत दी गई है।
शिवकुमार-सिद्धारमैया तनातनी: ‘कम बोलो, पार्टी को नुकसान न हो’
दोनों नेताओं ने सार्वजनिक रूप से विवाद को कम करने की कोशिश की है। शिवकुमार ने कहा, “मैं जल्दबाजी में नहीं हूं। हाईकमान जो कहेगा, वही होगा।” सिद्धारमैया ने भी कहा, “हमारा मकसद पार्टी को मजबूत रखना है। कोई भी बयान ऐसा न हो जो इस्तेमाल हो जाए।” लेकिन पर्दे के पीछे खींचतान जारी है। शिवकुमार के गुट ने 2.5 साल के ‘रोटेशनल सीएम’ समझौते का हवाला दिया, जबकि सिद्धारमैया समर्थक इसे ‘फर्जी’ बता रहे हैं।
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पृष्ठभूमि: 2023 का वादा और अब की जंग
2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत के बाद सिद्धारमैया को सीएम बनाया गया, लेकिन कथित समझौते के तहत आधे कार्यकाल (नवंबर 2025) बाद शिवकुमार को सौंपा जाना था। शिवकुमार ने चुनाव प्रचार में अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन हाईकमान ने सिद्धारमैया को चुना। अब शिवकुमार के समर्थक विधायक दिल्ली पहुंचे हैं, जबकि सिद्धारमैया के बेटे यथिंद्र ने कहा, “कोई रोटेशनल डील नहीं थी।”
राजनीतिक निहितार्थ: भाजपा का तंज, 2028 चुनाव पर असर?
भाजपा ने इसे ‘कांग्रेस बनाम कांग्रेस’ बताते हुए मजाक उड़ाया। कर्नाटक भाजपा अध्यक्ष बीवाई विजयेंद्र ने कहा, “यह पावर और पैसे की जंग है।” विश्लेषक मानते हैं कि अगर विवाद लंबा खिंचा तो 2028 चुनावों में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। वोकालिगा (शिवकुमार) और अहिंदू (सिद्धारमैया) गुटों के बीच संतुलन बनाना हाईकमान के लिए चुनौती है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “शिवकुमार को इंतजार करना पड़ेगा। सिद्धारमैया का कार्यकाल पूरा होगा, लेकिन भविष्य में शिवकुमार की बारी आ सकती है।” अब सभी की नजरें 1 दिसंबर पर हैं, जब हाईकमान का अंतिम फैसला आ सकता है।





