मुजफ्फरनगर के तीतावी थाना क्षेत्र के गांव नरोत्तमपुर का एक दलित परिवार मंगलवार को DM कार्यालय फरियाद लेकर पहुंचा। पीड़ित धीरज कुमार ने काज़ीखेड़ा-जाग्गाहेड़ी स्थित कल्याणकारी कन्या इंटर कॉलेज पर गंभीर इल्ज़ाम लगाए कि उनकी तीन बेटियों को प्रबंधन ने महज़ इसलिए स्कूल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, क्योंकि वो पति-पत्नी पड़ोसियों के साथ हुए एक मामूली से झगड़े में जेल चले गए थे।
छोटा झगड़ा, ज़ुल्म बड़ा
धीरज कुमार ने बताया कि पड़ोसियों से मामूली इख्तिलाफ़ हुआ, पुलिस ने उन्हें और उनकी बीवी को जेल भेज दिया। घर पर तीन मासूम बेटियां अकेली रह गईं। स्कूल जाने पर प्रबंधन ने साफ़ कह दिया कि “तुम्हारे माता–पिता जेल में हैं, हम ऐसे बच्चियों को नहीं पढ़ा सकते।” 9वीं कक्षा में पढ़ने वाली गुरमीत रानी और 8वीं कक्षा में पढ़ने वाली उपासना रानी समेत तीनों के नाम काट दिए गए।

जातीय भेदभाव का ज़हर
पीड़ित ने इल्ज़ाम लगाया कि स्कूल की मैडम ने दबंगई दिखाते हुए कहा कि “तुम वाल्मीकि हो, जेल से आए हो, हम तुम्हारे बच्चों को नहीं पढ़ाएंगे।” पत्नी जेल से रिहा होकर बच्चियों को ले गईं तो भगा दिया गया।
जेल में DM-जज से फरियाद, कोई इंसाफ़ नहीं
जेल निरीक्षण के दौरान धीरज दंपति ने जिलाधिकारी और जज साहब से शिकायत की। लेकिन महीनों गुज़र गए, स्कूल पर कोई कार्रवाई नहीं। पुलिस से फरियाद की तो गालियां मिलीं। पीड़ित के मुताबिक, पुलिस ने उनसे कहा कि “हम तुम्हारे बच्चियों का दाखिला कराएंगे क्या?”
शिक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान
यह वाकिया उत्तर प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलता है। जहां एक तरफ़ “बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ” के नारे लगते हैं, वहीं दलित बच्चियों को मां-बाप की ग़लती की सज़ा दी जाती है। स्कूल, जो तालीम का मरकज़ होना चाहिए, भेदभाव का अड्डा बन गया। क्या RTE का हक़ सिर्फ़ अमीर-उच्च जाति के लिए है? क्या दलित बच्चियों का भविष्य इतना सस्ता है कि एक झगड़े में दांव पर लग जाए?
इंसाफ़ की गुहार
धीरज कुमार ने आखिरी फरियाद लगाई कि
“मेरी तीन बेटियां हैं, मैं उन्हें पढ़ाना चाहता हूं। लेकिन छोटी सोच वाले लोग हमें परेशान कर रहे हैं। स्कूल पर सख्त कार्रवाई हो, ताकि मेरी बच्चियां फिर पढ़ सकें।”
अब DM तक मामला पहुंचा है। देखना यह है कि व्यवस्था कब जागेगी और ऐसे स्कूलों पर गाज गिरेगी।




